छत्तीसगढ़

खास खबर : इंदिरा और राव सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे दिग्गज आदिवासी नेता अरविंद नेताम आरएसएस मुख्यालय नागपुर में होंगे प्रमुख अतिथि, चर्चा में छत्तीसगढ़ की राजनीति

रायपुर. 5 जून 2025 छत्तीसगढ़ के लिए ऐतिहासिक रहने वाला है. सामाजिक और राजनीतिक दोनों ही रूप से छत्तीसगढ़ के लिए बड़ा घटनाक्रम दर्ज हो रहा है. विशेषकर बस्तर और आदिवासी समाज और इस समाज को लेकर होने वाली राजनीति और सामाजिक गतिविधियों को लेकर. वजह है संघ और भाजपा के कई प्रमुख एजेंडों के खिलाफ प्रखर और मुखर विरोधी रहे नेता को संघ मुख्यालय में बतौर प्रमुख अतिथि के तौर पर बुलाया जाना. ऐसा पहली बार हो रहा है जब छत्तीसगढ़ से किसी गैर-भाजपाई दिग्गज आदिवासी नेता को संघ मुख्यालय में अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है.

बात हो रही है इंदिरा और राव सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे अरविंद नेताम के संघ मुख्यालय में बतौर प्रमुख अतिथि के रूप में जाने और उन्हें मोहन भागवत की ओर से बुलाए जाने की. दरअसल संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अरविंद नेताम को नागपुर में आयोजित प्रशिक्षण शिविर के समापन पर प्रमुख अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया है.

इस आमंत्रण को लेकर लल्लूराम डॉट कॉम से चर्चा में अरविंद नेताम ने कहा कि यह छत्तीसगढ़ की राजनीति और आदिवासी समाज के लिए एक ऐतिहासिक घटनाक्रम है. मुझे संघ प्रमुख की ओर से बुलावा आया और मैं तीन दिनों तक संघ मुख्यालय नागपुर में रहूँगा. 3 जून को मैं नागपुर जाऊँगा. 3, 4 और 5 जून में नागपूर में रहकर संघ की गतिविधियों को करीब से देखूँगा. 5 जून को मोहन भागवत के साथ बतौर प्रमुख अतिथि के रूप में प्रशिक्षण शिविर कार्यक्रम पर मंच साझा करूंगा.

उन्होंने कहा कि विचाराधारा हमारी अलग-अलग है. हमारे कई मुद्दें भी अलग-अलग हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि हम एक-दूसरे के विचारों और विषयों को करीब से समझे और उस पर बात करें. संघ वाले आदिवासियों को वनवासी कहते हैं. इस पर हमारी आपत्ति है. इस आपत्ति को हमने राजाराव पठार के कार्यक्रम में दर्ज कराई थी. जब हमने संघ के नेताओं को कार्यक्रम में बुलाया था. हमने कहा है कि वनवासी की जगह आप कुछ और कहिए. आदिवासी हिंदू हैं या नहीं इस पर भी बहस होती रही है. लेकिन मैं यह साफ कहना चाहूंगा कि आदिवासियों की अपनी पूजा-पद्धति है. उन्हें उनके हिसाब रहने और मानने दिया जाए. लेकिन यह भी है कि हमारे समाज में बहुत से गोड़ आदिवासी भी हैं, जो सनातनी परंपरा को मानते हैं. इसमें कोई बुराई भी नहीं है. मैदानी क्षेत्रों के गोड़ आदिवासी सनातनी परंपरा को अपनाकर कार्य करते हैं. ये अच्छी बात है. मेरे भी परिवार में एक पक्ष सनातनी है.

खैर, मैं तो यही चाहूंगा कि बस्तर, बस्तर के आदिवासी, आदिवासियों के मुद्दें और उनकी मांगों पर संघ गंभीरता से विचार करे. क्योंकि केंद्र और राज्य में इस समय भाजपा की सरकार है. भाजपा सरकार में संघ का दखल किस तरह रहता है यह सभी जानते हैं. संघ के कार्यक्रम में मैं छत्तीसगढ़ के विषयों पर खुलकर बात करूँगा. मैं चाहूंगा कि संघ प्रमुख और तमाम नेता उन विषयों को समझे. हमारी किसी से कोई टकराहट नहीं है. संघ का अपना नजरिया है और उनकी अपनी अलग कार्यशैली है. उनके कई कार्यों का मैं प्रशंसक भी हूँ. कई मौकों पर मैंने देखा है कि मोहन भागवत ने मुखरता से भारत के मुद्दों को समाज और सरकार के समक्ष रखा है. हम सबकी जिम्मेदारी भी यही है कि एक बेहतर भारत, छत्तीसगढ़ और समाज का निर्माण करें.

बता दें कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम अब राजनीति से रिटायर हो चुके हैं. वें मुख्यरूप से सर्व आदिवासी समाज के नेता के रूप में अब कार्य कर रहे हैं. लेकिन लंबे समय तक कांग्रेस में रहे हैं. 5 बार कांग्रेस से सांसद रहे. 70 के दशक में वें इंदिरा गांधी सरकार में सबसे युवा केंद्रीय मंत्री रहे हैं. बाद में 90 के दशक में नरसिम्हा राव सरकार में भी मंत्री रहे. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कुछ समय तक वीसी शुक्ल के साथ एनसीपी में रहे. कुछ अन्य राजनीतिक दलों में भी गए. 2018 विधानसभा के ठीक चुनाव से पहले कांग्रेस वापसी हुई. लेकिन 23 के चुनाव के पहले कांग्रेस सरकार से हुई अन-बन और नाराजगी के चलते कांग्रेस छोड़ राजनीति से रिटायर हो गए.

यही वजह है कि नेताम की राजनीतिक पृष्ठभूमि और आदिवासी समाज में उनकी भूमिका के मद्देनजर संघ मुख्यालय में उनका बतौर प्रमुख अतिथि शामिल होना छत्तीसगढ़ की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है. छत्तीसगढ़ में संघ और भाजपा के साथ कांग्रेस के कई नेता हैरान हैं. कई लोग यही सोच रहे हैं कि आखिर अरविंद नेताम को क्यों बुलाया गया ? क्या बस्तर की राजनीति या सामाजिक गतविधियों को लेकर संघ कुछ और ही सोच रहा है ? क्या आदिवासी मुद्दों पर संघ की भूमिका आगे कुछ रहने वाली है ? वैसे इन तमाम सवालों का जवाब नेताम के नागपुर दौरे से लौटने के बाद मिल पाएगा ?

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